Saturday, October 15, 2016

ग्लोबल वार्मिंग, मानव ही नहीं पृथ्वी पर प्राणि मात्र का अस्तित्व खतरे में, हो सकती है सारी दुनियां नष्ट!



ग्लोबल वार्मिंग पल-पल पूरे विश्व के लिये एक पर्यावरणीय और सामाजिक खतरा बनता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग पूरे विश्व में एक मुख्य वायुमण्ड्लीय खतरा है। सूरज की रोशनी का सीधा संबंध पृथ्वी से है, जो हर रोज गर्म होती जा रही है। प्राकृतिक जल स्रोत सूख रहे हैं और वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर लगातार बढ रहा है। इन अविचलित दुष्प्रभावों से मानव जाति ही नहीं प्राणि मात्र का जीवन का सामना बड़ी-बड़ी समस्याओं से हो रहा है। इससे निपटने के उचित और सार्थक प्रयास नहीं करने पर हो सकती है सारी दुनियां नष्ट! यदि इसी स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग प्रक्रिया जारी रहती है, तो शीघ्र ही महाविपत्ति आने में देर नहीं लगेगी। जिस तरह हम पानी गरम करते हैं, पृथ्वी पर विद्यमान सारी चीजें जलकर राख हो जाएंगी। आखिर क्या वजह रही है वायुमंडल में बढ़ती हुई कॉर्बनडाई आक्साइड की मात्रा का।

मूलभूत कारण


धरती पर इस विनाशक गैस के बढ़ने की मुख्य वजह जीवाश्म ईंधन जैसे, कोयला और तेल का अत्यधिक इस्तेमाल और जंगलों की कटाई है। धरती पर घटती पेड़ों की संख्या की वजह से कॉर्बनडाई आक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। इस हानिकारक गैस CO2 का इस्तेमाल पेड़-पौंधे ही मुख्य रूप में करते हैं और पेड़ ही नहीं बचे तो इस गैस का असर मानव जाति और प्राणियों पर पड़ना स्वाभाविक है। बढ़ते तापमान की वजह से समुद्र जल का स्तर बढ़ना, बाढ़ आना, तूफान, खाद्य पदार्थों की कमी, तमाम तरह की बीमारियों आदि का खतरा बढ़ रहा है। पूरे विश्व में इंसानों की न ध्यान देने वाली गलत आदतों की वजह से हमारी धरती की सतह दिनों-दिन गर्म होती जा रही है। धरती के लगातार गर्म होने का सीधा मतलब पर्यावरण में CO2 गैस की मात्रा बढ़ना है।

क्या है CO2 का अधिक उत्सर्जन

भले ही मानव समाज आधुनिक युग में अपने तत्काल और उपयोग में आसान कृत्रिम साधनों का लुत्फ उठा रहा है, पर वह यह भूल गया है कि इसका दुष्प्रभाव उसके दैनिक जीवन के अनिवार्य चीजों के साथ-साथ उसके जीवन-चक्र पर भी पड़ रहा है। आज ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि मानव अपने द्वारा सांस लेने के प्रक्रिया के दौरान छोड़ी गई गैस CO2 का स्वयं की उपयोग करने पर विवश है, या यूं कहें यह एक स्वचालित रूप से हो रहा है। अगर पेड़-पौधे व अन्य वनस्पतियां नष्ट कर दी गई हैं, जो CO2 उपयोग करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से मानव ही उसे उपयोग करने पर विवश है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
आज ग्लोबल वार्मिंग पर अंतराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा कर अमल में लाने के लिए संपूर्ण समाज को जागरूक करना है, जिससे हर व्यक्ति इस संकट से उबरने का भरसक प्रयास करे और दुनिया में शुद्ध पर्यावरण बनाने में अपना योगदान दे। पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने का मुख्य कारण CO2 के साथ-साथ मिथेन और अन्य विषैली ग्रीनहाउस गैस हैं, ग्लेशियरों का पिघलना, जैसे हिमालय का सिकुड़ना आदि अप्रत्याशित वायुमंडलीय परिवर्तन धरती पर आम हो गए हैं। जीवन शैली में बदलाव; हर्बल उत्पाद को महत्व देने और उपयोग में लाने का समय आ गया है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जल का वाष्पीकरण वातावरण में होने से ग्रीनहाउस गैस बन रही है और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने का यह अहम कारण है। इसके बढ़ने में तकनीकी विकास, जनसंख्या अधिक होना, औद्योगिकीकरण, वनों की कटाई और शहरीकरण भी मुख्य भागीदार हैं। विकास के नाम पर दूरस्थ क्षेत्रों तक सड़क बनाना, संयुक्त परिवार की प्रथा छोड़कर पृथक निवास बनाने की जीवन-शैली के चलते अधिक कंस्ट्रक्शन को बढ़ावा देकर मानव प्राणी प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहा है। संपूर्ण ग्लोबल कार्बन चक्र से ओजोन परत में लगातार छेद हो रहे हैं इसकी क्षमता निरंतर रूप से घट रही है, जिसके फलस्वरूप पराबैंगनी / अल्ट्रावॉयलेट किरणें धरती पर आसानी से पहुंच रही हैं और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने का कारण बन रही हैं। हमारी प्रकृति के विभिन्न रूप जैसे महासागर, ग्लेशियर, बर्फ सहित संपूर्ण पर्यावरण और धरती की सतह निरंतर गर्म होने की प्रक्रिया ही ग्लोबल वार्मिंग है। CFCs गैस के बढ़ने से भी ओजोन परत में कमी आ रही है। यह भी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में सहायक मानव द्वारा दिया उपहार है। इस गैस का इस्तेमाल कई जगहों पर होता है, जैसे औद्योगिक तरल सफाई में एरोसॉल प्रणोदक के रूप में और फ्रिज में, परिणामस्वरूप ओजोन परत में कमी आई है। ओजोन परत पृथ्वी को हानिकारक किरणों से बचाती है। हमारे वातावरण में एरोसॉल की उपस्थिति भी पृथ्वी की सतह के तापमान को बढ़ाती है। वातावरणीय ऐरोसॉल में फैलने की क्षमता होने की वजह से यह सूरज की किरणों को किरणों को सोखती है। ये बादलों के लक्षण और माइक्रोफिजीकल बदलाव कर सकते है। औद्योंगिक प्रक्रियाओं और परिवहन के माध्यम से अलग-अलग प्रदूषक निकलने के कारण वातावरण में रसायनों की अभिक्रिया से एरोसॉल उत्पन्न होता है।

ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप उजागर होते परिणाम:


ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तनों में गर्मी के मौसम में अत्यधिक गरमी, जाड़े के मौसम में तापमान के स्तर में अधिक कमी, विभिन्न प्रकार के चक्रवात आना, हिमालय पिघलना, मौसम में परिवर्तन, ओजोन परत क्षरण, बाढ़ और सूखा इत्यादि शामिल हैं।
कैसे करें ग्लोबल वार्मिंग का समाधान: